Rooh । रूह (PB)
S**A
Awesome
I like the sentences ,the words, description and inference by Manav Kaul. His writing is awe inspiring and when I read him it feels as if he is the door to my soul
S**A
Love it
B**Y
Brilliant Read!
I do not consider myself a voracious reader, but someone who really likes to choose what story I put my eyes on. And, when someone who was dear to me suggested I read "Rooh" by #ManavKaul, well, I had to. And, I am NOT disappointed!What a gorgeous account of the protagonist going back to his roots, to Kashmir, and somehow struggling to collect the lived portraits of his childhood. It is a beautifully penned down multi-layered narrative that keeps shuffling between the past and the present.#Rooh is as much about a Kashmir that had been left behind by the protagonist but its dreams haunt him every night, as it is about his father who could never let go of the hope of returning. His memories of Kashmir are entwined with that of his father’s.And, then, in the midst of all this, through and through, there lies Rooh. Overall, it is such an honest and true account of his feelings; a definitive read! Highly recommended. ❤️
A**R
जाइये पुराने रास्तों पर जहाँ आप खड़े होकर कुछ सोचना चाहते है।
यात्रा वृत्तांत की एक ख़ास बात होती है आपको लगता है कोई कैमरा लेकर आपके भीतर चला आ रहा है और उसके सारे किरदार आप अपने किरदार से जोड़ने लगते है। मुझे लगता है तभी लेखक अपनी सफलता महसूस कर सकता है जब पाठक उनके शब्दों के हर एक यादों को दीवार के खूँटी से उतार कर शर्ट की तरह अपने यादों में बदले और उसे पहन ले।इसके किरदार आपको मज़बूती से पकड़ लेते है अंतिम पेज तक आते आते। सारे किरदारों में बेबी आंटी और मुस्ताक ने ज़्यादा भावुक किया मुझे। एक बात तो है छुटे शहर छुटे हुए लोग आपके ज़हन में लकीर की तरह बन जाते है जिससे मिलना ही पुराने कल में जाने जैसा है।किरदारों के अलावा कश्मीर और रिश्तों की एक गिरह है “रूह” जो थोड़ा ज़्यादा भावुक है जिसे पढ़ते हुए लगेगा की आप भी “रूह” और लेखक के साथ सड़क के उसी गलियों में है जहाँ आपको ऐसा लगता है आप समुंदर है और बाहर से जैसे किसी ने पत्थर उछाला और यादों के तरंग आपके अंदर बनने लगा। “रूह” बहुत बेहतरीन और इंसानी बातों के साथ आगे बढ़ती है जिसमे राजनीति तो थोड़ी है लेकिन सामाजिक और रिश्तों की एहमियत ज़्यादा है।ये बात सच है जब आप शहर छोड़ते है तो क्या शहर आपको छोड़ता ? शायद नहीं…जितनी गिरह कश्मीर की ख़ूबसूरती पर उसके इतिहास की वजह से लगी है उस पर यह किताब बारिश की पहली बूँद की तरह है जिसकी वजह से एक बेहतर ख़ुशबू हमारे अंदर प्रवेश करती है।
R**R
One of the best
One of the best book, I have read.
H**
जितने लोग उतने कश्मीर
मुझे नही लगा था यह किताब में खरीदने के दो दिन में ही पूरी पढ़ लूंगा। ज़िन्दगी का अच्छा खासा वक़्त मैंने कश्मीर में बिताया है, और यह किताब पढ़ते हुए मैं जगहों को हू-ब-हू सोच पा रहा था।मानव सर का कश्मीर, शब्बीर का कश्मीर, उस्मान का, जीवन का, रूह का, रूहानी का.. बेबी आंटी का। हर एक का कश्मीर अलग है। अपनी अलग कहानी लिए।कश्मीर का दर्द लिखते या पढ़ते वक्त ये कहना, कश्मीरी हिन्दू या कश्मीरी मुसलमान, बहुत ओछी हरकत है।दर्द बिखरे पड़े हैं जिसे जो लगता है वो अपनी सुविधा अनुसार उठा लेता है।
A**N
बहुत उम्दा
पुस्तक पढ़ के ऐसा लगा जैसे अपनी ही जिंदगी आंखों के सामने से रिस रिस के गुजर रही हो, कहां भागती-दौड़ती जिंदगी शहर की और कहां वो सुकून हमारे गांव का। पर क्या वो गांव वही है जिन्हें हम जानते थे या कुछ और...
P**N
Journey to the past.
मानव कौल के पिछले लिखे की महक इस किताब में भी देखने को मिलती है। पढ़ने में बहुत मजा आया जैसा की मानव सर की हर किताब में आता है ।
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1 day ago
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